महाकुंभ में पहला शाही स्नान, 3.5 करोड़ ने डुबकी लगाई:लोगों को रेलवे स्टेशन जाने से रोका, ट्रेन के हिसाब से प्लेटफार्म पर भेजा जा रहा

 

कुंभ मेला हिंदू धर्म का एक प्रमुख पर्व है, जिसका इतिहास कम से कम 850 वर्ष पुराना माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इसकी शुरुआत आदि शंकराचार्य ने की थी। हालांकि, कुछ पौराणिक कथाओं के अनुसार, कुंभ मेले की परंपरा समुद्र मंथन के समय से ही प्रारंभ हो गई थी।

पौराणिक कथा के अनुसार, महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण इंद्र और अन्य देवता शक्तिहीन हो गए थे, जिससे राक्षसों ने उन पर आक्रमण कर दिया। इस समस्या के समाधान के लिए भगवान विष्णु ने देवताओं को दैत्यों के साथ मिलकर क्षीर सागर का मंथन कर अमृत निकालने की सलाह दी। समुद्र मंथन से अमृत कलश प्राप्त हुआ, जिसे इंद्र के पुत्र जयंत ने देवताओं के इशारे पर लेकर आकाश में उड़ान भरी। राक्षसों ने उनका पीछा किया, जिससे 12 दिनों तक देवताओं और दैत्यों के बीच संघर्ष हुआ। इस दौरान अमृत की बूंदें हरिद्वार, प्रयाग (इलाहाबाद), उज्जैन और नासिक में गिरीं। इसीलिए इन चार स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन होता है।

कुंभ मेले का आयोजन हर 12 वर्ष में एक बार होता है, जबकि प्रत्येक स्थान पर हर 3 वर्ष के अंतराल पर यह मेला आयोजित किया जाता है। इस प्रकार, हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक में बारी-बारी से कुंभ मेले का आयोजन होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कुंभ में स्नान करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

प्रयागराज में महाकुंभ मेला 2025: दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन
 
Credit : Dainik Bhaskar

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *